Bharat Ka Itihas In Hindi PDF| Complete History of indian | प्राचीन भारतीय इतिहास

Bharat Ka Itihas In Hindi PDF Complete History of indian :- हेलो फ्रेंड आप परीक्षा की तयारी में काफी मेहनत कर रहे होंगे और आज हम आपके लिए लाये है भारत के इतिहास के बारे में जोकि प्रतियोगी परीक्षा में अक्सर पूछे जाते हैं Bharat Ka Itihas In Hindi ये PDF आपकी SSC , RAILWAY, NTPC, ,UPSC, DELHI POLICE For Exams जैसी विभिन्न परीक्षाओ का सरकार द्वारा आयोजन कि जाने वाली परीक्षाओ में महत्व पूर्ण रहने वाली है आने वाले परीक्षा में यह भारत का इतिहास बहुत उपयोगी सिद्ध होगा जिससे आप अपनी तैयारी और भी अच्छे तरीके से कर सकते हैं Bharat Ka Itihas :- प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के 4 मुख्य स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। पुरातात्विक स्त्रोत, धर्म ग्रंथ, ऐतिहासिक ग्रंथ, विदेशियों का विवरणप्राचीन भारत के अध्ययन हेतु पुरातात्विक स्त्रोत सबसे अधिक प्रमाणिक व विश्वसनीय है। और इस पोस्ट से हम प्राचीन भारत का इतिहास और आधुनिक भारत का इतिहास के बारे में अध्यन करेंगे। तो चलिए पेज स्क्रॉल करो और अपनी स्टडी जारी रखो।और आप भारत का इतिहास नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड Download PDF  कर सकते हैं और आप Live View भी देख सकते हैं

Bharat Ka Itihas In Hindi PDF| Complete History of indian

Bharat Ka Itihas In Hindi PDF भारत का इतिहास

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है। जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश तथा यहां के निवासियों को भारती अर्थात् भारत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिंदुस्तान के नाम से संबोधित किया है। Prachin Bharat Ka Itihas

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प्राचीन भारत का इतिहास

प्राचीन भारतीय इतिहास ( Prachin Bharat Ka Itihas ) जानने के 4 मुख्य स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। Prachin Bharat Ka Itihas

  1. पुरातात्विक स्त्रोत
  2. धर्म ग्रंथ
  3. ऐतिहासिक ग्रंथ
  4. विदेशियों का विवरण

1* पुरातात्विक स्रोत bharat ka itihas

प्राचीन भारत के अध्ययन हेतु पुरातात्विक स्त्रोत सबसे अधिक प्रमाणिक व विश्वसनीय है। पुरातात्विक स्त्रोत में अभिलेख, सिक्के, मूर्तियां, स्मारक एवं भवन, चित्रकला, अवशेष आदि जाने जाते हैं।Bharat ka itihas

Online Test दीजिए :-

पुरातात्विक स्तम्भ अभिलेख उनके स्थान
स्तम्भ अभिलेख स्थल समय सम्बन्द्ध व्यक्ति अभिलेख की विषयवस्तु
1. बौद्ध स्तम्भ लेख भरहुत शुंग काल राजा बासुदेव शुंग वंश का प्रारंभिक स्रोत है
2. गरुड़ स्तम्भ लेख बेसनगर ( विदिशा ) शुंग काल भागभद्र नैतिक शिक्षा की युक्ति द्वारा आत्मसंयम , त्याग व सतकर्ता में तीनो नैतिक कार्य स्वर्ग का पक्ष प्रस्तुत करते है ।
3. प्रयाग प्रशस्ति ( स्तम्भ लेख ) प्रयाग , इलाहबाद गुप्तकालीन समुद्रगुप्त समुद्रगुप्त की विजयो का यशोगान , जिसकी रचना हरिषेण के काव्य शैली में की है ।
4. ऐरण स्तम्भ लेख ऐरण , मध्य प्रदेश गुप्तकालीन समुद्रगुप्त समुद्रगुप्त के व्यक्तिगत मामलो की सुचना देता है । यह वैदर्भीर शैली में है ।
5. मथुरा स्तम्भ लेख मथुरा , उत्तर प्रदेश गुप्तकालीन चद्रगुप्त – 2 Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार प्रथम गुप्त अभिलेख जिसमे गुप्त संवत का सबसे पहला वर्ष वर्णित है । वैष्णन धर्मी गुप्त सम्राट की धार्मिक सहिष्णुता पर प्रकश पड़ता है । महेश्वर समुदाय के उदितचार्य का वर्णन मिलता है ।
6. मेहरौली स्तम्भ लेख मेहरौली , दिल्ली गुप्तकालीन चद्रगुप्त – 2 व्यास के समीप विष्णुपाद पहाड़ी पर स्थिल था , जो वर्मन में कुतुबमीनार के पास है तथा तत्कालीन धातु विज्ञानं का उत्कृष्ट उदहारण है ।
7. भिलसड़ स्तम्भ लेख भिलसड़ , एटा गुप्तकालीन कुमार गुप्त – 1 कुमार गुप्त प्रथम के प्रथम लेख में गुप्त सम्राटो की वंशावली का विवरण है । इसमें कार्तिकेय मंदिर का भी उल्लेख है ।
8. भीतरी स्तम्भ लेख भीतरी , ग़ाज़ीपुर गुप्तकालीन स्कन्दगुप्त Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार हुडो से किये गए , स्कन्दगुप्त के पराक्रमी युद्ध एवं उसके द्वारा विष्णु मूर्ति की स्थापना का उल्लेख ।
9. बिहार स्तम्भ लेख बिहारशरीफ , पटना गुप्तकालीन स्कन्दगुप्त स्कन्दगुप्त द्वारा अश्वमेघ यज्ञ किये जाने का तथा एक स्तूप के निर्माण करने का उल्लेख ।
10. ऐरण स्तम्भ लेख ऐरण , मध्य प्रदेश गुप्तकालीन बुधगुप्त इसमें चतुर्भुजी भगवन विष्णु का सर्वप्रथम अभिलेखीय प्रमाण तथा भगवन विष्णु की महिमा में महाराजा मातृ विष्णु एवं धन्य विष्णु द्वारा ध्वज स्तम्भ के निर्माण का वर्णन प्रस्तुत करता है । सप्ताह के दिनों के नमो का प्रारंभिक प्रयोग है ।
11. ऐरण स्तम्भ लेख ऐरण , मध्य प्रदेश गुप्तकालीन भानुगुप्त महान पराक्रमी गोपराज के रणभूमि में शहीद हो जाए एवं उसकी पत्नी के चिता पर सती हो जाने का प्रथम उल्लेख ।
12. तालगुंडा स्तम्भ लेख शिमोगा , मैसूर गुप्तकालीन शांति वर्मन / मयूर शमरन Puratatvik Srot के वर्णन अनुसार दक्षिण में कदम्बो के इतिहास के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत एवं कदम्ब शासक मयूरशामृन के पल्लवों से संघर्ष का उल्लेख तथा रचयता कवी के रूप में कुब्ज का उल्लेख है ।

प्राचीन भारतीय इतिहास :-

अभिलेख- पुरातात्विक स्त्रोत के अंतर्गत अभिलेख सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत स्वीकार किए जाते हैं। प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों , ताम पत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण है। सर्वाधिक प्राचीन अभिलेख मध्य एशिया के बोगजकोई नामक स्थान से लगभग 1400 ईसापूर्व प्राप्त हुई है। इस अभिलेख में इंद्र, मित्र, वरुण और नासत्य आदि वैदिक देवताओं के नाम दिए गए हैं। भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक महान के प्राप्त होते हैं यह अभिलेख तीसरी शताब्दी ईसापूर्व के हैं। अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी,आरमेइक लिपियों में पाए गए हैं।

  • प्रारंभिक अभिलेख (गुप्त काल से पूर्व) प्राकृत भाषा में हैं। सर्वप्रथम 1834 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखे गए अशोक के अभिलेखों को पड़ा था।
  • सिक्के- आरंभिक सिक्कों पर चिन्ह पाए जाते हैं, परंतु बाद के सिक्के पर राजाओं और देवताओं के नाम तथा तिथियां भी उत्कीर्ण है। आहात सिक्के पंच मार्क सिक्के भारत के प्राचीनतम सिक्के हैं। यह 5 वीं सदी ईसापूर्व के हैं। आरंभिक सिकके अधिकांश चांदी के हैं यह पंच मार्क आहत सिक्के कहलाते थे। सातवाहनों ने शीशे तथा गुप्त शासकों ने सोने के सर्वाधिक सिक्के प्रचलित किए थे। सर्वप्रथम लेख वाले स्वर्ण सिक्के हिंद-यूनानी इंडो ग्रीक शासकों ने प्रचलित किया था।Bharat ka itihas
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2*-धर्म ग्रंथ-
भारत का सर्व प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है। जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है। वेद चार है- ऋग्वेद। यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।

ऋग्वेद-

ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त एवं 10462 ऋचाएं है।
इस वेद के ऋचाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है
इस के 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।
इसके 8 वे में मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है।
यजुर्वेद-

सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठ करता को अध्वर्यु कहते हैं। यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में लिखा गया है।Bharat ka itihas

सामवेद-

यह गायी जा सकने वाले ऋचाओं का संकलन है। इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।

अथर्ववेद-

अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में रोग निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, औषधि। अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राजकर्म , मातृभूमि आदि विविध विषयों से संबंध मंत्र तथा सामान्य मनुष्य के विचारों, विश्वासों, अंधविश्वासों आदि का वर्णन है।

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3*-ऐतिहासिक ग्रंथ-

संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध अध्ययन लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।
अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य( कौटिल्य/ विष्णुगुप्त) है। यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है। इससे मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
अष्टाध्याई संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक के लेखक पाणिनि हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्य युगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। इनके महाभाष्य से सुंगों के इतिहास का पता चलता है।

4*-विदेशी यात्रियों से मिलने वाली प्रमुख जानकारियां

1-यूनानी रोमन-लेखक-

टेसियस- यह ईरान का राजवैद्य था, भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय हैं।
मेगास्थनीज- यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। जो चंद्रगुप्त मौर्य के राज दरबार में आया था। इस ने अपनी पुस्तक इंडिका मे मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
टालमी- इस ने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी थी।
पिलनी -इसने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं पेड़-पौधों खनिज पदार्थों के बारे में विवरण मिलता है।
हेरोडोटस -इसे इतिहास का पिता कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत के संबंध का वर्णन किया है। परंतु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों अफवाहों पर आधारित है।
2-चीनी लेखक-
फाहियान- यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्य प्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्य प्रदेश की जनता को सुख एवं समृद्धि बताया है।

संयुगन- यह 518 ईस्वी में भारत आया। इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित की।

हेनसांग- यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। इसने ६२९ ई. में चीन से भारत वर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग 1 वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुंचा। भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई. में चीन लौट गया। वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्रित कर ले जाने के लिए आया था। इस का भ्रमण वृतांत सी- यू- की नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्ष कालीन समाज धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिंध का राजा शूद्र था।

3-अरबी लेखक-
अलबरूनी- यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब- उल- हिन्द या तहक़ीक़- ए- हिंद (भारत की खोज) आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसमें राजपूत कालीन समाज धर्म रीति रिवाज राजनीतिक आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है।

इन्हें पढ़िए अवश्य :-

मध्यकालीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत

मध्यकालीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-साहित्यिक स्रोत तथा पुरातात्विक स्रोत। साहित्यिक स्रोत-

साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है –धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष।
धार्मिक ग्रंथ- धार्मिक ग्रंथों की श्रेणी में हुए रचनाएं आती है जो किसी धर्म से संबंधित होती हैं मध्यकाल में सूरदास, तुलसीदास, रसखान की रचनाएं तथा मीराबाई, चैतन्य, विद्यापति ठाकुर के गेय पद एवं हमदानी,जख़ीरात उल मुल्क नामक तुर्की ग्रंथ आदि महत्वपूर्ण है। इनसे तत्कालीन धार्मिक, एवं सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।

धर्मनिरपेक्ष- धर्मनिरपेक्ष विवरणों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है।
अ)- कल्पना प्रधान लोक साहित्य, जीवन चरित्र व अन्य ग्रंथ- विदेशी यात्रियों के विवरण तथा शाही फरमानों व पत्रों को छोड़कर सभी धर्मनिरपेक्ष साहित्य इसी शीर्षक में आ जाता है। कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं:

फतहनामा, राजतरंगिणी, तुजुक ए बाबरी, हुमायूंनामा, तुजुक ए जहांगीरी, तारीख ए शेरशाही,अकबरनामा, बादशाहनामा, मुंतखब उल लुबाब, पद्मावत, पुरुष परीक्षा।

  • अली अहमद द्वारा रचित फतहनामा (चचनामा) से अरबों के आक्रमण से पूर्व एवं बाद के सिंध के इतिहास की जानकारी मिलती है|
  • मीर मुहम्मद मासूम रचित तारीख-ए-सिंध से अरबों के सिंध-विजय का उल्लेख मिलता है।
  • सुबुक्तगीन एवं महमूद गजनी के संबंध में उत्बी रचित किताब-उल-यामिनी से जानकारी मिलती है।
  • जैनुल-अखबार की रचना अबु सईद ने की थी, इससे महमूद गजनी के जीवन पर प्रकाश पड़ता है। मिनहाज-उस-सिराज जुजानी रचित तबकात-ए-नासिरी से दिल्ली सल्तनत का कालक्रमिक एवं क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत होता है।
  • इस तरह का विवरण प्रस्तुत करने वाला यह पहला ग्रंथ है।
  • जियाउद्दीन बरनी रचित तारीख-ए फिरोजशाही द्वारा बलबन के राज्याभिषेक से फिरोज तुगलक के शासनकाल के छठवें वर्ष तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।
  • कल्हण कृत राजतरंगिणी से कश्मीर की जानकारी प्राप्त होती है।
  • फिरोज तुगलक रचित फुतुहात-ए-फिरोजशाही से उसके शासनकाल का विवरण मिलता है।
  • अलबरूनी द्वारा रचित किताब-उल-हिंद . (तहकीक-ए-हिंद) महमूद गजनी कालीन भारतीय समाज का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है।
  • याह्या-बिन-अहमद-सरहिन्दी ने अपने ग्रंथ तारीख-ए-मुबारकशाही में तैमूर के आक्रमण के पश्चात सैय्यद वंश के शासनकाल का वर्णन किया है।

आधुनिक भारत का इतिहास Adhunik Bharat Ka Itihas

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यूरोपीय कम्पनीयों का आगमन (पुर्तगाली)

  1. पुर्तगालियों को समुद्री व्यापार का एकाधिकार
  2. वास्कोडिगामा का भारत आगमन
  3. पुर्तगालियों की पहली कोठी
  4. फारस की खाडी पर अधिकार
  5. पुर्तगाली बस्तियों का गवर्नर
  6. पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक
  7. पुर्तगालियों की कोठियाँ
  8. कोलम्बो तथा मलक्का पर अधिकार
  9. पुर्तगालियों की भारत को देन
  10. ऑडियो नोट्स सुनें

डच (हॉलैडवासी) ईस्ट इण्डिया कम्पनी
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 ई. में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की गई ये ड्च हॉलैण्ड के निवासी थे

  1. डचों की प्रथम फैक्ट्री
  2. डचों द्वारा निर्यात
  3. जहांगीर का फरमान
  4. राहदारी से मुक्ति
  5. डचों के व्यापार का अंत
  6. डचों के पतन के कारण
  7. ऑडियो नोट्स सुनें

अंग्रेजों का भारत आगमन

  1. मर्चेट एडवेंचरस
  2. महारानी एलिजाबेथ द्वारा कम्पनी को एक चार्टर
  3. हॉकिंस का भारत आगमन
  4. जहाँगीर के दरबार में हॉकिंस
  5. ब्रिट्रिश कम्पनी की पहली फैक्ट्री
  6. सूरत में स्थायी रूप से कोठी
  7. सर टॉमस रो का जहाँगीर के दरबार में आगमन
  8. मैग्नाकार्टा या महाधिकार पत्र
  9. मैग्नाकार्टा के फरमान
  10. अंग्रेजों की फैक्ट्रियां
  11. भडौच और बडौदा में फैक्ट्री स्थापित करने का उद्देश्य
  12. ऑडियो नोट्स सुनें
  13. अतिरिक्त जानकारी
स्वाधीनता संग्राम

प्रथम चरण (1885-1905 ई०)

  • इस काल को उदारवादी राष्ट्रीयता का युग भी कहा गया है !
  • कांग्रेस की स्थापना के बाद, अगले 20 वर्षों तक उसको नीति अत्यंत उदार थी। इसे बाद के उग्रपंथी नेताओं ने राजनीतिक भिक्षावृत्ति (Political Mendicancy) कहा।
  • 1888 ई० में दादा भाई नौरोजी ने विलियम डिग्बोई की अध्यक्षता में इंडियन एजेंसी की स्थापना की।
  • दादा भाई नौरोजी, ए० ओ० ह्यूम, एवं वेडरबर्न जैसे नेता कांग्रेस की मांगों का इंगलैंड में प्रचार करने के पक्ष में थे। इस उद्देश्य से लंदन में भारतीय सुधार समिति की स्थापना की।
  • 1889 ई० में कांग्रेस की ब्रिटिश शाखा ब्रिटिश समिति बनी जिसने इंडिया नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जिसने भारतीय स्थितियों से इंगलैंड के जनमानस को परिचित कराया।

स्वतन्त्रता आंदोलन में आरंभिक राजनीतिक संगठन

  • 1836 ई० में राजा राम मोहन राय के अनुयायियों ने पहली राजनीतिक संस्था बंग प्रकाशक सभा की स्थापना की।
  • 1838 ई० में बंगाल के जमींदारों ने लैंड होल्डर्स सोसायटी की स्थापना की।
  • 1843 ई० में एक अन्य राजनीतिक सभा बंगाल ब्रिटिश इण्डिया सोसायटी बनी।
  • 28 अक्टूबर, 1851 ई० को ‘लैंड होल्डर्स सोसायटी’ एवं ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी’ को मिलाकर एक नवीन राजनीतिक संगठन ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन बनाया गया।
  • कलकत्ता के ‘ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन’ के नमूने पर 26 अगस्त, 1852 को बंबई में भी एक बम्बई एसोसिएशन की स्थापना हुई।
  • महादेव गोविंद राणाडे ने 1870 ई० में पूना में पूना सार्वजनिक सभा गठित की।
  • दादा भाई नौरोजी ने 1866 ई० में लंदन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

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