Maharana Udai Singh History महाराणा उदय सिंह का इतिहास प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है, प्रतियोगी परीक्षाओं में महाराणा उदय सिंह (Maharana Udai Singh) से संबंधित प्रश्न अवश्य पूछे जाते हैं | इसलिए आज हम आप सभी विद्यार्थियों को महाराणा प्रताप सिंह का इतिहास, जीवन परिचय एवं 448वीं पुण्यतिथि के बारे में बताएंगे ! इस लेख मैं दिए गए Udai Singh I and II History, को पढ़कर आने वाले आगामी परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं | इसलिए मेवाड़ महाराणा उदयसिंह जी की 448वीं पुण्यतिथि पढ़िए और उनकी संक्षिप्त जीवनी पढ़ें और उन्हें अवश्य Share करें |
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महाराणा उदय सिंह जीवन परिचय
राणा उदयसिंह ( Rana Udai Singh, जी का जन्म : 4 अगस्त, 1522 ई.में हुवा और मृत्यु: 28 फ़रवरी, 1572 ई.) मेवाड़ के राणा साँगा के पुत्र और राणा प्रताप के पिता थे। इनका जन्म इनके पिता के मरने के बाद हुआ था और तभी गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ नष्ट कर दिया था। इनकी माता कर्णवती द्वारा हुमायूँ को राखीबंद भाई बनाने की बात इतिहास प्रसिद्ध है। मेवाड़ की ख्यातों में इनकी रक्षा की अनेक अलौकिक कहानियाँ कही गई हैं।
उदयसिंह को कर्त्तव्यपरायण धाय पन्ना के साथ बलबीर से रक्षा के लिए जगह-जगह शरण लेनी पड़ी थी। उदयसिंह 1537 ई. में मेवाड़ के राणा हुए और कुछ ही दिनों के बाद अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर चढ़ाई की। हज़ारों मेवाड़ियों की मृत्यु के बाद जब लगा कि चित्तौड़गढ़ अब न बचेगा तब जयमल और पत्ता आदि वीरा के हाथ में उसे छोड़ उदयसिंह अरावली के घने जंगलों में चले गए। वहाँ उन्होंने नदी की बाढ़ रोक उदयसागर नामक सरोवर का निर्माण किया था। वहीं उदयसिंह ने अपनी नई राजधानी उदयपुर बसाई। चित्तौड़ के विध्वंस के चार वर्ष बाद उदयसिंह का देहांत हो गया।
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Maharana Udai Singh History in Hindi
राणा संग्राम सिंह उपनाम राणा सांगा एक बहुत ही वीर शासक थे। परिस्थितियों ने उनकी मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र कुंवर उदय सिंह को वीरमाता पन्ना धाय के संरक्षण में रहने के लिए विवश कर दिया। माता पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर ‘मेवाड़ के अभिशाप’ बने बनवीर से मेवाड़ के भविष्य के राणा उदय सिंह की प्राण रक्षा की और उसे सुरक्षित रूप में किले से निकालकर बाहर ले गयी। तब चित्तौड़ से काफ़ी दूर राणा उदय सिंह का पालन पोषण आशाशाह नाम के एक वैश्य के घर में हुआ।
इतिहासकारों ने बताया है कि माता पन्नाधाय के बलिदान की देर सवेर जब चित्तौड़ के राजदरबार के सरदारों को पता चली तो उन्होंने बनवीर जैसे दुष्ट शासक से सत्ता छीनकर राणा सांगा के पुत्र राणा उदय सिंह को सौंपने की रणनीति बनानी आरंभ कर दी। उसी रणनीति के अंतर्गत राणा उदय सिंह को चित्तौड़ लाया गया। राणा के आगमन की सूचना जैसे ही बनवीर को मिली तो वह राजदरबार से निकलकर सदा के लिए भाग गया। इससे राणा उदय सिंह ने निष्कंटक राज्य करना आरंभ किया। यह घटना 1542 की है। यही वर्ष अकबर का जन्म का वर्ष भी है।
नोट : हम जल्द ही महाराणा उदय सिंह जी की आगे का इतिहास उपलब्थ कराएगे !!
**उदय सिंह जी की 448 वीं पुण्यतिथि**
[better-ads type=”banner” banner=”4621″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]- 1522 ई. :- महाराणा सांगा व रानी कर्णावती के पुत्र कुंवर उदयसिंह का जन्म
- 1528 ई. :- जब कुंवर उदयसिंह 6 वर्ष के थे, तब पिता महाराणा सांगा का देहांत हुआ
- 1534 ई. :- कुंवर उदयसिंह 12 वर्ष के थे, तब माता कर्णावती जी समेत हज़ारों क्षत्राणियों ने जौहर किया
- 1535 ई. :- दासीपुत्र बनवीर द्वारा महाराणा विक्रमादित्य की हत्या, बनवीर का चित्तौड़गढ़ पर कब्ज़ा व कुंवर उदयसिंह को मारने का प्रयास, महाबलिदानी माता पन्नाधाय द्वारा पुत्र चंदन का बलिदान करके कुंवर के प्राणों की रक्षा
- 1537 ई. :- कुंभलगढ़ दुर्ग में सामंतों द्वारा महाराणा उदयसिंह का राज्याभिषेक
- 1538-39 ई. :- महाराणा उदयसिंह व महारानी जयवंता बाई का विवाह
- 1540 ई. :- कुंवर प्रताप का जन्म, मावली के युद्ध में 20 वर्षीय महाराणा उदयसिंह द्वारा बनवीर के सेनापति कुंवरसिंह की पराजय, महाराणा की ताणा विजय, कूटनीति से बनवीर को चित्तौड़गढ़ के युद्ध में पराजित कर गढ़ पर अधिकार
- 1544 ई. :- अफगान बादशाह शेरशाह सूरी की चित्तौड़गढ़ पर चढ़ाई की ख़बर सुनकर महाराणा उदयसिंह ने कूटनीति से दुर्ग की चाबियां उसके पास जहाजपुर भिजवा दी, शेरशाह ने शम्स खां को फौज देकर चित्तौड़ भेजा। शम्स खां किले की तलहटी में फौज समेत रहने लगा, जिससे महाराणा के अधिकार सीमित हो गए।
- 1546 :- महाराणा उदयसिंह ने मीराबाई जी को चित्तौड़गढ़ लाने के लिए ब्राम्हणों को भेजा, पर मीराबाई जी नहीं आईं
- 1549 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा सही समय आने पर शम्स खां की फौज पर आक्रमण व विजय
- 1554 ई. :- महाराणा उदयसिंह ने बूंदी के शासक राव सुल्तान हाड़ा को बर्खास्त कर राव सुर्जन हाड़ा को बूंदी की गद्दी पर आसीन किया
- 1555-57 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा कुंवर प्रताप को सेनापति बनाकर वागड़, छप्पन व गोडवाड़ के क्षेत्र विजित कर मेवाड़ में मिलाना
- 1557 ई. :- अफगान हाजी खां की वजह से मेवाड़ महाराणा उदयसिंह व मारवाड़ नरेश राव मालदेव के बीच युद्ध। इस लड़ाई में महाराणा के ललाट पर तीर लगा।
- 1559 ई. :- अकबर की ग्वालियर विजय। महाराणा उदयसिंह द्वारा अकबर के शत्रु राजा रामशाह तोमर को चित्तौड़ दुर्ग में शरण देना व अपनी पुत्री का विवाह कुंवर शालिवाहन तोमर से करवाना। इसी वर्ष महाराणा द्वारा विश्व के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक ‘उदयपुर’ की स्थापना की गई। महाराणा द्वारा नौचोक्या महल, नेका की चौपाड़, जनाना रावला, राज आंगन, मोती महल, उदयसागर झील का निर्माण।
- 1560 ई. :- बैरम खां व अकबर के बीच हुए तिलवाड़ा युद्ध से पूर्व बैरम खां द्वारा महाराणा उदयसिंह से फौजी सहायता की मांग व महाराणा द्वारा फौज देने से इनकार।
- 1561 ई. :- अकबर की मालवा विजय। अकबर के शत्रु मालवा के बाज बहादुर को महाराणा उदयसिंह ने शरण दी।
- 1562 ई. :- अकबर की मेड़ता विजय। महाराणा उदयसिंह द्वारा अकबर के शत्रु वीर जयमल जी को मेवाड़ में बदनोर की जागीर देना। इसी वर्ष सिरोही के मानसिंह जी देवड़ा ने मेवाड़ में शरण ली। इसी वर्ष महाराणा ने सादड़ी पर अधिकार किया। इन्हीं दिनों महाराणा उदयसिंह ने अकबर के अफगान शत्रुओं को मेवाड़ में शरण देकर मेवाड़ की फौज में भर्ती किया।
- 1563 ई. :- महाराणा उदयसिंह की भोमट के राठौड़ों पर विजय
- 1565 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयसागर झील की प्रतिष्ठा
- 1567 ई. :- अकबर द्वारा चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण, महाराणा उदयसिंह सामंतों की सलाह पर राजपरिवार सहित राजपीपला चले गए, दुर्ग में वीर पत्ताजी व जयमलजी के नेतृत्व में केसरिया, रानी फूल कंवर जी के नेतृत्व में जौहर, अकबर द्वारा 30000 नागरिकों का कत्लेआम। अकबर के 30000 सिपाहियों की मृत्यु।
- 1568 ई. :- बाज बहादुर की मांग को लेकर अकबर ने उदयपुर पर कुछ सैनिक टुकड़ियां भेजीं, छुटपुट लड़ाइयां भी हुईं, फिर भी महाराणा ने बाज बहादुर को अकबर के हवाले नहीं किया।
- 1570 ई. :- महाराणा उदयसिंह द्वारा कुंभलगढ़ में नई फौज तैयार करके गोगुन्दा पधारना व गोगुन्दा को मेवाड़ की राजधानी घोषित करना। इसी वर्ष अकबर का नागौर दरबार हुआ, जिसमें महाराणा उदयसिंह ने जाने से इनकार किया।
- 1571 ई. :- अकबर द्वारा राजा भारमल के ज़रिए महाराणा उदयसिंह को संधि प्रस्ताव भिजवाना व महाराणा द्वारा अधीनता स्वीकार करने से इनकार।
- 28 फरवरी, 1572 ई. :- होली के दिन महाराणा उदयसिंह जी का देहांत हुवा |
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